कल के मरते आज मरे हम , जीने कि दरकार किसे है ।
कल के मरते आज मरे हम , जीने कि दरकार किसे है । कल के मरते आज मरे हम , जीने कि दरकार किसे है । सारी दुनिया चाह भी ले हम हमसे यंहा पर प्यार किसे है ।। शाम निकल आते जब तारे , घर को जाते हैं पंछी सारे ,, चहचहा कर मुझको चिढ़ाते , घर पर तेरी याद किसे है मंजिल की अब दौड़ नहीं है , अपनी किसी से होड़ नहीं है ,, क्षितिज पर आकर जब से देखा दिखता अब संसार किसे है । झूठी दुनिया के लोग हैं झूठे , पीछे कड़वे सामने मीठे ,, मतलब कि सीखु दुनियादारी ? मतलब के रखने यार किसे हैं । आस्तीन में सांप निकले , है ईश्वर अब रात न निकले ,, सपने भी डसते अब मुझको , सेजो की दरकार किसे हैं । तुम हो हमारे हम हैं तुम्हारे , कहते थे जो लोग ये सारे ,, उजले चहरे मन हे काले , कहते मेरे दिल के छाले ,, मीठी बाते रास न आती , सच्चों पर एतबार किसे है । कल के मरते आज मरे हम , जीने कि दरकार किसे है । by - Rk think's ----////----- ।। राधे राधे ।। - RK think's poetryrkthinks Creater-: R K think's facebook -: instagram- . Youtube . Pinterest